कोरबा :- गौरैया हमारी प्रकृति और उसकी सहचरी है। यादें आज भी हमारे जेन में ताजा हैं। नवरात्र में अम्मा अक्सर मिट्टी की हांडी नीम के पेड़ तले गाड़ती और चिड़िया के साथ दूसरे पक्षी अपनी प्यास बुझाते। वर्षों पहले जब आंगन में फुदकती नन्ही-सी चिड़िया चोंच में दाना दबाए फुर्र होती थी,तो उसकी चींचीं की चहचहाहट हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी थी, लेकिन अब यह आंगन से गुम हो गई है। इंसान के बेहद करीब रहने वाली कई प्रजाति के पक्षी और चिड़िया आज हमारे बीच से गायब है। लेकिन बदलते दौर और नई सोच की पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति कोई सोच ही नहीं दिखती है।
अब बेहद कम घरों में पक्षियों के लिए इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।प्यारी गौरैया कभी घर की दीवाल पर लगे ऐनक पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती तो की कभी खाट के नजदीक आती। एक वक्त था, जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोंसले लटके होते और चूजे चीं-चीं-चीं का शोर मचाते। सब कुछ कितना अच्छा लगता। बचपन की यादें आज भी जेहन में ताजा हैं, लेकिन वक्त के साथ गौरैया एक कहानी बन गई है।
पर्यावरण संरक्षण में उसकी खास भूमिका
उसकी आमद बेहद कम दिखती है। गौरैया इंसान की सच्ची दोस्त भी है और पर्यावरण संरक्षण में उसकी खास भूमिका भी है। विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम ने हमारे सामने कई चुनौतियां भी खड़ी की हैं, जिससे निपटना हमारे लिए आसान नहीं है। विकास के इसी भागमभाग के बीच विलुप्त संरक्षित करने दुनियाभर में 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे बचपन की यादें गौरैया बिन अधूरी होती है।
20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस
वर्षों पहले जब आंगन में फुदकती नन्ही-सी चिड़िया चोंच में दाना दबाए फुर्र होती थी, तो उसकी चींचीं की चहचहाहट हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी थी, लेकिन बढ़ता शहरीकरण, कटते पेड़, तापमान, रेडिएशन और मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली तरंगे संकट खड़ा कर रही हैं। अब नन्ही सी चिरैया घर के आंगन से गुम होती जा रही है। हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, इसका उद्देश्य लोगों में गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना है।
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इसी जागरुकता हेतु मातृका सोसाइटी कोरबा द्वारा चित्रकला, कहानी, संस्मरण,प्राकृतिक फोटोग्राफ इत्यादि का आयोजन किया गया, जिसमें पूरे देश से प्रतिभागियों ने भाग लेकर गौरैया संरक्षण हेतु संकल्प लिया। मातृका सोसाइटी द्वारा गौरैया को “गूगल गौरैया ” बनने से बचाने हेतु इन पक्षियों के लिए दाने, पानी की व्यवस्था और आवास का वितरण किया गया।
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कार्यक्रम में मौर्य ज्योति भोजपुर, अथर्व श्रीवास्तव,कोरबा,गौरवी वर्मा, जयपुर ,आयुष खूबचंदानी जोधपुर ,श्रीमति पुष्पा शांडिल्य कोरबा,मंजुला श्रीवास्तव कोरबा,हर्शल देवांगन ने चित्रकला में तथा कविता और कहानी की शानदार रचना देकर तमन्ना भोजपुर,डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव, कोलकाता,वीना अडवाणी(तन्वी) नागपुर,डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव पटना ,मंजुला श्रीवास्तव कोरबा,भारती चौरसिया कोरबा, रश्मि श्रीवास कोरबा,जगदीश “जय” कोरबा,निर्मला सिन्हा,डोंगरगढ़ ,लक्ष्मी दीक्षित ग्वालियर,पुष्पा शांडिल्य कोरबा,लता सेनइंदौर,उषा वर्मा, संस्मरण जयपुर सहित सैकड़ों लोगों ने अपना योगदान प्रदान किया। मातृका सोसाइटी द्वारा अलग अलग स्थानो पर 8 सालों में लगभग 120 से अधिक पक्षियों को आवास प्रदान किया है।