कोरबा/पाली/ सरकारी तंत्र के क्रियाकलापों की जानकारी आम लोगों के पहुँच में हो और भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लग सके, इन्ही उद्देश्यों के साथ देश मे सूचना का अधिकार लागू है। सभी विभागों में जनसूचना अधिकारी नियुक्त किया गया है और जानकारी देने के लिए समय भी निर्धारित किया गया है। पर शायद देश का यह कानून कोरबा जिले के पाली जनपद पंचायत कार्यालय में लागू नही होता। सम्भवतः यही कारण है कि आवेदकों को जानकारी नही दी जा रही है।
स्थानीय पाली (मादन) निवासी आरटीआई कार्यकर्ता विजय (बादल) दुबे ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी पाली जनपद कार्यालय में 05 जून 2024 को सूचना के अधिकार के तहत दो अलग- अलग आवेदन दिया था। उन्होंने पहले आवेदन में दिनांक 01/01/2021 से 31/07/2023 के अंतर्गत रीपा कार्य तथा दूसरे आवेदन में दिनांक 01/01/2021 से 31/08/2023 तक बाड़ी विकास योजना के तहत कराए गए कार्यों के सत्यापित छायाप्रति मांगी थी। पाली जनपद के जनसूचना अधिकारी भूपेंद्र सोनवानी ने जिन चाही गई जानकारी के संबंध में कोई जवाब देना उचित नही समझा है। लिहाजा आवेदक जानकारी पाने जनपद कार्यालय का चक्कर काट रहा है।
आवेदक विजय दुबे ने कहा कि पाली का जनपद पंचायत कार्यालय भ्रष्ट्राचार, रिश्वतखोरी, भाई- भतीजावाद व अफसरशाही के गिरफ्त में है, जहां बिना लेनदेन के कोई काम नही होता। सूचना का अधिकार से जिन दो बिंदु पर जानकारी मांगी गई है, उसमे भी व्यापक तौर पर भ्रष्ट्राचार हुआ है। जिसे जनपद कार्यालय के अधिकारी दबाने में लगे है व जानकारी देने में आनाकानी कर रहे।
यदि मांगी गई जानकारी बाहर आ जाती है तो लाखों करोड़ों के भ्रष्ट्राचार की कलई खुल सकती है और पाली जनपद के कई अधिकारी कर्मचारी नप सकते है। जिसे ढंकने के प्रयास में जानकारी नही दी जा रही। पुष्ट सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भ्रष्ट्राचार मामले में अंदरूनी रूप से उलझे पाली जनपद सीईओ अपने अन्यंत्र स्थान्तरण को लेकर उच्च स्तरीय प्रयास में लगे हुए है।
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इसमें कितनी सच्चाई है यह इसकी पुष्टि तो हम नही करते, किन्तु यह जरूर है कि आम आदमी को मिले सूचना के अधिकार का जनपद के चार दिवारी के भीतर कोई असर नही हो रहा। जबकि नियमानुसार 30 दिवस के समय सीमा में जवाब देना होता है, नही देने की स्थिति में संबंधित को एक- एक दिन का 250 रुपए के हिसाब से जुर्माना होता है। पर पाली जनपद में न तो किसी को जवाबदारी की परवाह है और न ही जुर्माने की। जब भी कोई आम आदमी अपने अधिकारों की बात करता है तो प्रशासन में बैठे नौकरशाह या जवाबदार प्रतिनिधि उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने से नही चूकते।
इस बात में अब कोई संदेह नही रह गया है। सूचना का अधिकार 2005 का कानून जब संसद में पास हुआ था तब देश के महान न्यायविदों, बुद्धिजीवियों ने इस कानून की तुलना देश की आजादी के बाद दूसरी आजादी से की थी। एक अर्थशास्त्री ने तो यहां तक कहा था कि यदि इस कानून का पचास फीसदी भी पालन हो गया तो देश को विश्व बैंक से कर्ज लेने की जरूरत ही नही पड़ेगी। लेकिन पाली जनपद के अधिकारी सूचना का अधिकार की धज्जियां उड़ाने में लगे है। जहां इस कानून व्यवस्था की स्थिति पर जिला प्रशासन की खामोशी और गंभीर मामला बनकर रह गया है।